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पुराणों में क्या है? (हज़ारों पृष्ठों में फैले अठारह पुराणों का सहज, सरल एवम् संक्षिप्त सार) - What is There in the Puranas?

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Item Code: HAA127
Author: पंकज दीक्षित: (Pankaj Dikshit)
Publisher: Pustak Mahal
Language: Hindi
Edition: 2011
ISBN: 9788122307428
Pages: 214
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 280 gm
Book Description

लेखक परिचय

 

पंकज दीक्षित राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान दिल्ली से जवाहरलाल नेहरु विश्वविदालय से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एमफिलहै। 'कला-इतिहास के श्रीयंत्र' विषय पर शोध कार्य भी कर चुके है। एक अन्य शोध पर इन्हें नेहरु, ट्रस्ट, फ़ार इंडियन, कलेक्शन एट विक्टोरिया एण्ड एल्बर्ट म्यूज़ियम' लंदन द्वारा अध्ययन-वृत्ति का पुरस्कार प्रदान किया गया है। इधर कई वर्षों से देश-विदेश की प्रतिष्ठत पत्र-पत्रिकाओं में धर्म दर्शन संस्कृति इतिहास पुरातत्व और स्थापत्य पर इनकी रचनाएं निरंतर प्रकाशित हो रही हैं।

पुस्तक परिचय

 

यस्मात्पुरा ह्यानतीदं पुराणा तेज हि स्मृतम् ।

निरुक्तम यो  वेद सर्वपापै: प्रमुव्यते ।।

अर्थात् प्राचीन काल से जीवित और प्रवाहमान होने के कारण इसे पुराण कहा गया है । जो व्यक्ति इसके निरुक्त को जान लेता है, वह सब पापो से मुक्त हो जाता है ।

वेदों से भी पूर्व जिन शब्दों को स्मृति में संजोया गया, वही पुराण हैं । ये प्राचीनतम धरोहर हैं, जिन्हें व्यास जी ने 18 खण्डों में विभक्त किया । इन महान् धर्म ग्रंथों के विशाल भंडार में सृष्टि, लय, मन्वंतरों तथा प्राचीन ऋषियों, मुनियों और राजाओं के वंशों तथा चरितों का वर्णन समाहित किया गया है । भारतीय जीवन शैली, भक्ति मार्ग और कर्मयोग का पुराणों में अद्भुत समन्वय मिलता है । हजारों पृष्ठों में फैले इन पुराणरूपी मुक्ताओं की दिप-दिप दमकती आभा से जो दिव्य दर्शन होता है, उससे प्रत्येक धर्म प्राण मनुष्य का जीवन निहाल हो जाता है । पुराण ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं, जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म का पूर्ण परिचय तो देते ही हैं, साथ ही मनुष्य की जीवन शैली को सही रास्ता दिखाते हैं ।

आज के बेहद जटिल और व्यस्त दौर में आदमी को इतनी फुर्सत ही नहीं कि वह इस विशाल ज्ञान-गंगा में गोते लगाकर सब कुछ जान सके, जबकि वह इस समृद्ध वाङ्मय को जानने-समझने के लिए बेहद इच्छुक रहता है । इसी कारण आज की पीटी के लिए एक श्रृंखला तैयार की गई है: 'धर्म-ग्रंथों में क्या है?' इसके अंतर्गत पुराणों में क्या है? श्रृंखला की तीसरी कड़ी है । सरल, सहज एवं रोचक शैली में रचित यह पुस्तक सब कुछ को थोड़े में देकर जिज्ञासु पाठक की क्षुधा शान्त करने में सक्षम है।

 

स्वकथन

 

हमारे धर्म के लिए मानवधर्म, सनातनधर्म या आर्यधर्म, जो वैदिक जीवन पद्धति पर आधारित थे, ये विशेषण ही शास्त्रों में मिलते हैं, पर आज हम अन्य सभ्यताओं द्वारा 'सिन्धु' में '' के स्थान पर 'ह' के उच्चारण के कारण हिंदू हैं । हमारा धर्म रिलीजन नहीं है, क्योंकि यह निश्चित विश्वासों पर आधारित कोई संस्थागत धर्म नहीं है । हिन्दूधर्म एक पुस्तक व एक शिक्षक की अवधारणा को भी स्वीकार नहीं करता । यह एककेन्द्रीय न होकर बहुकेन्द्रीय है । यह अपने सम्मिलित आध्यात्मिक व अपौरुषेय लान द्वारा अविच्छिन्न परम्परा में स्थापित शाश्वत मूल्यों का पालन करता है । नए अन्वेषण को सहज स्वीकार कर व्यष्टि मन को समष्टि मन से मिलने की, मार्ग चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है । हिन्दूधर्म एक जीवन पद्धति है । मनुष्य की प्रकृति व ब्रह्मांड की अन्य नीहारिकाओं से एकात्मक अनूभूति का सहसंबंध स्थापित करने की विधि है।

शब्द या श्रुति व पारम्परिक सुने शास्त्र या संस्कृति की वाक् धरोहर आमूलत: परिवर्तित नहीं होते । यही शब्द पुराण हैं । प्रजापति ब्रह्मा को 'वेदों से भी पूर्व' जिन शब्दों का स्मरण हुआ और जो हमारी प्राचीनतम धरोहर हैं, वही अनादि अपौरुषेय पुराण हैं, जिन्हें व्यासजी ने 18 खंडों में विभक्त करके पौरुषेय रूप दिया । भारतीय जीवनशैली, भक्तिमार्ग व कर्मयोग का जैसा सुंदर समन्वय इन अठारह पुराणों में मिलता है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है । जैसे देह के समुद्र में मन का मोती पलता है, वैसे ही विशाल भारतीय वाङ्मय में ये पुराण-मुक्ता भी बहुत गहरे जाने पर अपनी आभा प्रकट करते हैं । इसके शब्द का, भाव का, प्रतीकों का, सूक्ष्मरूप का सचेत व जाग्रत मन से आस्वादन करने पर वैदिकसभ्यता, सनातनधर्म व मानव जीवनशैली की सार्थकता का बोध होगा । भारतीय-संस्कृति की दृष्टि वस्तु के ऊपर तक ही नहीं होती, वरन् वह उसके  भीतर भी प्रवेश करती है । भारतीय जीवनशैली विशाल है, पर भारी नहीं, मौलिक है, पर कृत्रिम नहीं । अतीत से जुड़ी है, पुरातन के प्रति विद्रोह की प्रेरणा नहीं देती, अभिनव का अनुसंधान करती है, परंतु प्राचीन परम्पराओं की अवमानना करके नहीं, अपितु उनके अनदेखे स्वप्नों की लालसा पूर्ण करने के लिए । पुराणों की विस्तृत व विशाल शब्दसंपदा का संक्षिप्तीकरण मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के लिए दुस्साहस ही है, परंतु पाठकों के मन में यदि यह प्रयास अपनी संस्कृति, जीवनशैली व धर्म के प्रति बीजरूप में अपनी जड़ स्थापित कर गया, तो मुझे विश्वास है कि आप स्वयं पुराणों के वटवृक्ष की छाया का आनंद लेंगे और बीज से वृक्ष, बूंद के सागर, अणु से ब्रह्मांड की भारतीय-संस्कृति की प्रवाहशील धारा में आप सहभागी व सहयोगी होंगे ।

 

 

अनुक्रम

अध्याय 1

पुराण क्या है?

9

अध्याय 2

पुराणों के लक्षण व सर्वमान्य संख्या 

14

अध्याय 3

भारतवर्ष का पौराणिक भूगोल

21

अध्याय 4

पुराणों का संक्षिप्त परिचय

31

अध्याय 5

पुराणों की जीवनोपयोगी कथाएं

177

अध्याय 6

पौराणिक आख्यानों की अनुक्रमणिका

210

 

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