अंक ज्योतिष: Numerology

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Item Code: HAA014
Author: पंडित गोपेशकुमार ओझा (Pt. Gopesh Kumar Ojha)
Publisher: Motilal Banarsidass Publishers Pvt. Ltd.
Language: Hindi
Edition: 2008
ISBN: 9788120821194
Pages: 187
Cover: Paperback
Other Details 7.0 inch x 5.0 inch
Weight 130 kg
Book Description

प्राक्कथन

 

बन समाश्रित। येSपि निर्ममा निष्परिग्रहा: ।।

अपि ते परिपृच्छन्ति ज्योतिषां गति कोविदम् ।।

जो सर्वसंग परित्याग कर वन का समाश्रय ले चुके हैं, ऐसे रागद्वेष शून्य, निष्परिग्रह मुनिजन-संत-महात्मा भी ज्योतिष शास्त्र वेत्ताओं से भविष्य ज्ञात करने के लिये उत्सुक रहते हैं; तब साधा- रण संसारी प्राणी की तो चर्चा ही क्या ?

प्राय: इस भविष्य ज्ञान की प्राप्ति ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होती है ज्योतिष शास्त्र अथाह सागर है जन्म-कुण्डली निर्माण के लिये, जन्म का स्थान, ठीक समय का ज्ञान आदि परमावश्यक हैं शुद्ध लग्न, भाव स्पष्ट, ग्रह स्पष्ट, मान्दि स्पष्ट मित्रामित्रचक्र, सप्तवर्गी चक्र, दशवर्ग, दशा, अन्तर्दशा, अष्टक वर्ग, सर्वाष्टक वर्ग आदि बनाने में बहुत गणित करना पड़ता है और परिश्रम साध्य है फलादेश में भी अनेक विचारों का सामन्जस्य करना पड़ता है बृहत् ज्योतिष शास्त्र की परिक्रमा लगाना वैसा ही कठिन है जैसा पृथ्वी की परिक्रमा लगाना

पृथ्वी की परिक्रमा के सम्बन्ध में पुराणों में एक कथा' है कि एक बार स्वामी कार्तिक तथा गणेश जी दोनों ने आग्रह किया कि उनका विवाह हो स्वामी कार्तिक चाहते थे पहिले उनका विवाह हो तथा गणेश जी चाहते थे पहिले उनका विवाह तब उनके माता-पिता ने कहा कि जो पहिले पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण कर आवेगा उसी का विवाह पहिले किया जावेगा स्वामी कातिक अपने वाहन मयूर पर चह कर द्रुतगति से चले और देखते-देखते आँखों से ओझल हो गये गणेश जी का शरीर भारी और वाहन छोटा-सा 'मूषक' सो विचार में पड़ गये कि कैसे परिक्रमा पूर्ण करूँ? उन्होंने आने माता-पिता को बैठाया, उनके चरणों का पूजन कर बार माता-पिता की परिक्रमा की और प्रणाम कर कहा कि ''मैंने पृथ्वी की परिक्रमा कर ली--भाई एक बार भी परि- क्रमा करके नहीं आये अब पहिले मेरा विवाह कीजिये'' शास्त्रों में माता-पिता का पूजन और परिक्रमा पृथ्वी-परिक्रमा के समान है इस युक्ति से गणेश जी का विवाह हो गया और उन्हें ऋद्धि, बुद्धि-यह दोनों विश्वरूप प्रजापति की दो सुन्दरी कन्याएँ--पत्नी रूप में प्राप्त हुई

कहने का तात्पर्य यह है कि जो सज्जन ज्योतिष शास्त्र की बृह- त्परिक्रमा में अक्षम हैं, वह गणेश जी के उपर्युक्त उदाहरण को लेकर ''अंक विद्या'' का अभ्यास करें तो थोड़े परिश्रम से--केवल अंगरेज़ी की जन्म तारीख, नाम, किंवा प्रश्न से भविष्य का बहुत कुछ शुभाशुभ जान सकते हैं अंगरेज़ी में Numerology की अनेक पुस्तकें हैं किन्तु हिन्दी में. अंक-विद्या (ज्योतिष) की कोई पुस्तक. मेरे देखने में नहीं आई अनेक ग्रन्थों का अध्ययन तथा अनुशीलन कर यह पुस्तक पाठकों के सम्मुख ररवी जा रही लूँ

शरण करवाणि कामद ते चरणं वाणि चराचरोपजीव्यम् ।।

करुणामसृणै कटाक्षपातै: कुरुमामम्ब कृतार्थसार्थवाहम् ।।





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