पुस्तक परिचय
ध्यान की गहराइयों में वह किरण आती है, वह रथ आता है द्वार पर जो कहता है सम्राट हो तुम, परमात्मा हो तुम, प्रभु हो तुम, सब प्रभु है, सारा जीवन प्रभु है । जिस दिन वह किरण आती है, वह रथ आता है, उसी दिन सब बदल जाता है । उस दिन जिंदगी और हो जाती है । उस दिन चोर होना असंभव है । सम्राट कहीं चोर होते हैं! उस दिन क्रोध करना असंभव है । उस दिन दुखी होना असंभव है । उस दिन एक नया जगत शुरू होता है । उस जगत, उस जीवन की खोज ही धर्म है ।
इन चर्चाओं में इस जीवन, इस प्रभु को खोजने के लिए क्या हम करें, उस संबंध में कुछ बातें मैंने कही हैं । मेरी बातों से वह किरण न आएगी, मेरी बातों से वह रथ भी न आएगा, मेरी बातों से आप उस जगह न पहुंच जाएंगे । लेकिन ही, मेरी बाते आपको प्यासा कर सकती हैं । मेरी बातें आपके मन में घाव छोड जा सकती हैं । मेरी बातों से आपके मन की नींद थोड़ी बहुत चौंक सकती है । हो सकता है, शायद आप चौंक जाएं और उस यात्रा पर निकल जाएं जो ध्यान की यात्रा है ।
तो निश्चित है, आश्वासन है कि जो कभी भी ध्यान की यात्रा पर गया है, वह धर्म के मंदिर पर पहुंच जाता है । ध्यान का पथ है, उपलब्ध धर्म का मंदिर हो जाता है । और उस मंदिर के भीतर जो प्रभु विराजमान है, वह कोई मूर्तिवाला प्रभु नहीं है, समस्त जीवन का ही प्रभु है ।
इस पुस्तक के कुछ विषय बिंदु :
o परमात्मा को कहा खोजें ?
o क्यों सबमें दोष दिखाई पड़ते हैं
o जिंदगी को एक खेल और एक लीला बना लेना
o क्या ध्यान और आत्मलीनता में जाने से बुराई मिट सकेगी
सम्यक प्रारंभ
मैने सुना है एक फकीर के पास कुछ युवक साधना के लिए आए थे कि हमें परमात्मा को खोजना है । तो उस फकीर ने कहा तुम एक छोटा सा काम कर लाओ । उसने उन चारो युवकों को एकएक कबूतर दे दिया और कहा कि कहीं अंधेरे में मार लाओ जहां कोई देखता न हो । एक गया बाहर उसने देखा चारों तरफ, सड़क पर कोई नहीं था, दोपहरी थी, दोपहर था, लोग घरों में सोए थे, तो उसने जल्दी से गर्दन मरोड़ी । भीतर आकर उसने कहा कि यह रहा, सड़क पर कोई भी नहीं था । दूसरा युवक बड़ा परेशान हुआ, दिन था, दोपहरी थी । उसने कहा मैं मारूं, तब तक कोई आ जाए, कोई खिड़की खोल कर झांक ले, कोई दरवाजा खोल दे, कोई सड़क पर निकल आए, तो गलती हो जाएगी । उसने कहा, रात तक रुक जाना जरूरी है । रात जब अंधेरा उतर आया तब वह गया और उसने गर्दन मरोड़ी और वापस लाकर सांझ को गुरु को दे दिया और कहा, यह रहा कोई भी नहीं था अंधेरा पूरा था । अगर होता भी तो भी दिखाई नही पड़ सकता था तीसरे युवक ने सोचा कि रात तो है, अंधेरी है, सब ठीक है, लेकिन आकाश में तारो का प्रकाश है, और कोई निकल आए, कोई दरवाजे से झांक ले, किसी को थोड़ा भी दिखाई पड़ जाए तो खतरा है । तो वह एक तलघरे मे गया, द्वार बंद कर लिया, ताला लगा लिया, गर्दन मरोड़ी, लाकर गुरु को दे दिया । उसने कहा कि तलघरे मे मारा, ताला बद था, भीतर आने का उपाय न था, नजर की तो बात ही नहीं आनी थी
चौथा युवक बहुत परेशान हुआ । पंद्रह दिन बीत गए और महीना बीतने लगा । गुरु ने कहा, वह चौथा कहां है? क्या अभी तक जगह नहीं खोज पाया आदमी खोजने भेजे । वह लड़का करीब करीब पागल हो गया था । कबूतर को लिए गाव गाव फिर रहा था, बिलकुल पागल हो गया था । लोगों से पूछता था ऐसी कोई जगह बता दो जहा कोई न हो । लोगों ने उसे पकड़ा, उसे गुरु के पास लाए और कहा कि पागल हो गए हो । तुम्हारे तीन साथी तो उसी दिनमार कर आ गए; रात होते होते सब वापस लौट आए । तुम क्या कर रहे हो? उसने कहा : मैं बडी मुश्किल में पड़ गया हूं । मैं भी अंधेरे तलघरे में गया, लेकिन जब मै कबूतर की गर्दन मरोड़ने लगा तो मैंने देखा, कबूतर मुझे देख रहा है । तो मैंने कबूतर की आंखो पर पट्टी बांध दी और मैं तब एक और अंधेरी गुफा में गया कि पट्टी में से ही किसी तरह दिखाई न पड़ जाए । लेकिन जब मै गर्दन मरोड़ने को था तो मैंने देखा कि में तो देख ही रहा हूं । तब मैंने अपनी आंखों पर भी पट्टी बांध ली और पट्टियों पर पट्टी बांध ली, ताकि आंख कहीं से झांक कर देख न ले । क्योंकि आदमी की आंख का कोई भरोसा नहीं । कितनी पट्टियां बंधी हों, थोड़ी तो झांक कर देख ही सकती है । और जहां मना ही हो वहां तो झांक कर देख ही सकती है । उसने कहा, मैंने काफी पट्टियां बांध लो, सब तरफ से पट्टियां बाध लीं, कबूतर की आंखों पर पट्टियां बांध लीं । बस गर्दन दबाने को था कि मुझे यह खयाल आया, अगर परमात्मा कहीं है तो उसे दिखाई तो पड़ ही रहा होगा । और उसी की खोज में मैं निकला हूं । तबसे मैं पागल हुआ जा रहा हूं और मुझे वह जगह ही नहीं मिल रही है जहा परमात्मा न हो । यह कबूतर सभ्हालिए आप । यह काम नहीं होने का । उसके गुरु ने कहा कि बाकी तीन फौरन विदा हो जाओ, तुम्हारी यहां कोई जरूरत नहीं है । इस चौथे आदमी की यात्रा हो सकती है । इसे जीवन के चारों तरफ छिपे हुए का थोडा सा बोध हुआ । इसने गहरे से गहरे खोज करने की कोशिश की । इसे कुछ बोध हुआ है कि कोई मौजूद है चारों तरफ ।
यह चारों तरफ जो मौजूदगी है, जो प्रेजेंस है उसका अनुभव, स्मरण इसका स्मरण कैसे जगे? जिसे हम भूल गए हैं और खोया नहीं, उसे हम फिर कैसे स्मरण करें? इन चार दिनों में आपसे मैं बात ही नहीं करना चाहता; सच तो यह है कि बात मै सिर्फ मजबूरी में करता हूं बात करने में मुझे बहुत रस नहीं है । बात सिर्फ इसलिए करता हूं कि कुछ और करने को भी आपको राजी कर सकूं । हो सकता है बात से आप राजी हो जाएं कुछ और किया जा सके, जिसका बात से कोई संबंध नहीं है । तो सांझ बात करूंगा और जिनको लगे कि ही, कहीं और यात्रा करनी है उनके लिए सुबह, बात नहीं, सुबह ध्यान का प्रयोग करेंगे और उस द्वार में प्रवेश की कोशिश करेंगे जहां से उस प्रभु का पता चलता है जो कि जीवन है । उसका पता चल सकता है । कठिन नहीं, क्योंकि वह बहुत निकट है । कठिन नहीं, क्योंकि वह दूर नहीं । और कठिन नहीं, क्योंकि हमने उसे सच में खोया नहीं है । और कठिन नहीं, क्योंकि हम चाहे उसे कितना ही भूल गए हों, वह हमें किसी भी हालत में और कभी भी नहीं भूल पाता है ।
अनुक्रम
1
प्रभु की खोज
9
2
बहने दो जीवन को
29
3
प्रभु की पुकार
41
4
जिंदगी बहाव है महान से महान की तरफ
61
5
प्रभु का द्वारा
73
6
ध्यान अविरोध है
91
7
जीवन ही है प्रभु
105
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