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जागो माँ कुल-कुण्डलिनी: Jago Maa Kul-Kundalini

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Item Code: HAA248
Author: स्वामी सत्यानन्द सरस्वती: (Swami Satyananda Saraswati)
Publisher: Yoga Publications Trust
Language: Hindi
Edition: 2010
ISBN: 9788185787589
Pages: 152
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 170 gm
Book Description

पुस्तक परिचय

जागो माँ कुल कुण्डलिनी स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा 1956 62 की अवधि में अपने एक प्रिय शिष्य को लिखे गये पत्रों का संकलन हैइस यौगिक एवं आध्यात्मिक प्रशिक्षण पद्धति के विस्तृत एवं गहन वर्णन द्वारा पाठक को गुरु शिष्य सम्बन्ध के विकास की दुर्लभ झलक तथा चेतना की जागृति हेतु क्रमिक साधना के परिपालन का शक्तिशाली साधन प्राप्त होता है

इस पुस्तक द्वारा स्वामी सत्यानन्द सरस्वती सबको अपनी आध्यात्मिक सलाह तथा प्रोत्साहन एवं ब्रह्माण्डीय परिप्रेक्ष्य में मानव अस्तित्व की गहनता समझ हेतु मार्गदर्शन प्रदान करते हैं

 

लेखक परिचय

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का जन्म उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा ग्राम में 1923 में हुआ । 1943 में उन्हें ऋषिकेश में अपने गुरु स्वामी शिवानन्द के दर्शन हुए । 1947 में गुरु ने उन्हें परमहंस संन्याय में दीक्षित किया । 1956 में उन्होंने परिव्राजक संन्यासी के रूप में भ्रमण करने के लिए शिवानन्द आश्रम छोड़ दियातत्पश्चात् 1956 में ही उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय योग मित्र मण्डल एवं 1963 मे बिहार योग विद्यालय की स्थापना कीअगले 20 वर्षों तक वे योग के अग्रणी प्रवक्ता के रूप में विश्व भ्रमण करते रहेअस्सी से अधिक ग्रन्यों के प्रणेता स्वामीजी ने ग्राम्य विकास की भावना से 1984 में दातव्य संस्था शिवानन्द मठ की एवं योग पर वैज्ञानिक शोध की दृष्टि से योग शोध संस्थान की स्थापना की । 1988 में अपने मिशन से अवकाश ले, क्षेत्र संन्यास अपनाकर सार्वभौम दृष्टि से परमहंस संन्यासी का जीवन अपना लिया है

 

प्रस्तावना

मानव सम्बन्धों की परम्परा में गुरु शिष्य सम्बन्ध निस्सन्देह सबसे आत्मीय और चिरस्थायी हैसभी प्रकार के स्वार्थपरक कर्मों और अपेक्षाओं से परे यह सम्बन्ध देह छूटने के पश्चात् भी रहस्यमय रूप से सक्रिय रहता हैभय, प्रेम, ईर्ष्या और घृणा जैसी वासनाओं विवशताओं से कुण्ठित सामान्य व्यक्ति भले ही इस शक्ति से अनभिज्ञ रहे, पर यह रहस्यमयी शक्ति उसकी आत्मा को गहन गत्वरों से उठाकर विकास के उतुंग शिखरों पर आसीन करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहती हैजिन गुरुजनों के माध्यम से यह सूक्ष्म शक्ति प्रवाहित होती है, भले ही वे स्वयं इस प्रक्रिया को बौद्धिक स्तर पर समझ या समझा नहीं पायें, पर गुरु कृपा की यही अकथ्य महिमा हैइस पुस्तक में संकलित पत्र गुरु शिष्य के एक ऐसे ही पुनीत सम्बन्ध का वास्तविक विवरण हैंएक दृष्टि से देखा जाए तो ये पत्र सद्गुरु के आध्यात्मिक सम्प्रेषण की भौतिक अभिव्यक्ति हैंमूलत ये स्वामी सत्यानन्द सरस्वती द्वारा अपने एक निकट शिष्य को लिखे गये व्यक्तिगत निर्देश हैं, पर इनमें निहित संदेशों और शिक्षाओं में असीम संभावनाएँ हैं कि ये आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले सभी नैष्ठिक साधकों का मार्गदर्शन कर सकें

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