निवेदन
इस समय सारे संसारमें द्वेष, कलह और मारकाट मची हुई है । सभी लोग एक दूसरेका विनाश करनेमें लगे हुए हैं, प्रकृति मानो पूर्णरूपसे क्षुब्ध हो रही है, किसीके जीवनमें सुखशान्ति नहीं है, प्राणिमात्र विकल है । यह सब ईश्वरमें अविश्वास, सच्चे धर्मपर अनास्था और सदाचारके लोपका परिणाम है । इस भीषण स्थितिसे त्राण पाने और मानवजीवनके प्रधान लक्ष्य भगवस्त्प्राप्तिके पुनीत पथपर लोगोंको अग्रसर करनेके लिये आवश्यकता है ईश्वरीय भावोंके पवित्र प्रचारकी । ऐसे आध्यात्मिक भाव सत्यसंगके बिना सहजमें नहीं मिल सकते । परन्तु सत्युरुषोंका सद्र: सब लोगोंको मिलना कठिन है । इसलिये सत्युरुषोंकी वाणीका प्रचार किया जाता है, जिससे दूर-दूर के स्थानोंमें रहनेवाले लोग भी अनायास ही सत्यसंग लाभ उठा सकें । ' तत्त्वचिन्तामणि' ग्रन्थ ऐसा ही अन्ध है । अबतक इसके चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं और उनसे लोगोंको बड़ा लाभ पहुँचा है । यह उसका पाँचवाँ भाग है । इसमें भी 'कल्याण 'में प्रकाशित लेखोंका ही संग्रह है । इन लेखोंमें अनुभवसिद्ध तत्त्वोंका विवेचन और आदर्श सदगुणोंका प्रदर्शन बड़े ही सुन्दर ढंगसे किया गया है । आसुरी दुर्गुणोंसे छूटकर अपनी ऐहिक और पारलौकिक उन्नति चाहनेवाले और मनुष्यजीवनमें परम ध्येयकी प्राप्ति करनेकी इच्छा रखनेवाले प्रत्येक नरनारीको इस अन्धका अध्ययन और मनन करना चाहिये । आशा है, मेरे इस निवेदनपर सब लोग ध्यान देंगे ।
चुने हुए अमूल्य रत्न
''ऐसी चेष्टा करनी चाहिये, जिससे एकान्त स्थानमें अकेलेका ही मन प्रसन्नतापूर्वक स्थिर रहे ।
फुल्लित चित्तसे एकान्तमें श्वासके द्वारा निरन्तर नामजप करनेसे ऐसा हो सकता है । ''
'' भगवत्प्रेम एवं भक्तिज्ञानवैराग्यसम्बन्धी शास्त्रोंको पढ़ना चाहिये ।''
'' एकान्त देशमें ध्यान करते समय चाहे किसी भी बातका स्मरण क्यों न हो, उसको तुरन्त भुला देना चाहिये । इस संकल्पत्यागसे बड़ा लाभ होता है । ''
''धनकी प्राप्तिके उद्देश्यसे कार्य करनेपर मन संसारमें रम जाता है, इसलिये सांसारिक कार्य बड़ी सावधानीके साथ केवल भगवत्की प्रीतिके लिये ही करना चाहिये । इस प्रकारसे भी अधिक कार्य न करे, क्योंकि कार्यकी अधिकतासे उद्देश्यमें परिवर्तन हो जाता है ।''
''सांसारिक पदार्थों और मनुष्योंसे मिलनाजुलना कम रखना चाहिये ।''
''संसार सम्बन्धी बातें बहुत ही कम करनी चाहिये ।''
'' बिना पूछे न तो किसीके अवगुण बताने चाहिये और न उनकी तरफ ध्यान ही देना चाहिये । ''
''सबके साथ निष्काम और समभावसे प्रेम करना चाहिये । ''नामजपका अभ्यास कभी नहीं छोड़ना चाहिये, नामजपमें बाधक विषयोंका त्याग कर सदासर्वदा ऐसी ही चेष्टा करते रहना चाहिये कि जिससे हर्ष और प्रेमसहित नामजपका अभ्यास निरन्तर बना रहे । ऐसा हो जानेपर भगवान्के दर्शनकी भी कोई आवश्यकता नहीं । ''
विषय
1
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामके गुण और चरित्र
7
2
हमारा लक्ष्य और कर्तव्य
39
3
जीवनका रहस्य
46
4
कुछ धारण करनेयोग्य अमूल्य बातें
59
5
ब्रह्मचर्य
68
6
त्रिविध तप
79
धर्मके नामपर पाप
90
8
सच्ची वीरता
99
9
समाजके कुछ त्याग करनेयोग्य दोष
105
10
प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृति
117
11
धर्मतत्त्व
128
12
पशुधन
141
13
वनस्पति घीसे हानि
147
14
प्राचीन हिन्दू राजाओंका आदर्श
150
15
परलोक और पुनर्जन्म
168
16
तीर्थो में पालन करनेयोग्य कुछ उपयोगी बातें
190
17
शोकनाशके उपाय
197
18
कर्मका रहस्य
209
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