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हिन्दी व्याकरण का इतिहास: History of Hindi Grammar

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Item Code: HAA286
Author: अनन्त चौधरी: (Anant Chaudhry)
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy
Language: Hindi
Edition: 2013
Pages: 721
Cover: Paperback
Other Details 8.5 inch X 5.5 inch
Weight 730 gm
Book Description

प्रस्तावना

शिक्षा संबधी राष्ट्रीय नीति संकल्प के अनुपालन के रूप में विश्वविद्यालयों मे उच्चतम स्तरों तक भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षा के लिए पाठ्य सामग्री सुलभ करने के उद्देश्य से भारतसरकार ने इन भाषाओं में विभिन्न विषयों के मानक ग्रन्थों के निर्माण, अनुवाद और प्रकाशन की योजना परिचालित की है इस योजना के अतर्गत अँगरेजी और अन्य भाषाओं के प्रामाणिक ग्रथों का अनुवाद किया जा रहा है तथा मौलिक ग्रथ भी लिखाए जा रहे हैं यह कार्य भारत सरकार विभिन्न रच्च सरकारो के माध्यम से तथा अंशत केन्द्रीय अभिकरण द्वारा करा रही है। हिंदीभाषी राज्यों में इस योजना के परिचालन के लिए भारत सरकार के शत प्रतिशत अनुदान से राज्य सरकार द्वारा स्वायत्तशासी निकायों की स्थापना हुई है बिहार मे इस योजना का कार्यान्वयन बिहार हिंदी ग्रन्थ अकादमी के तत्त्वावधान में हो रहा है

योजना के अतर्गत प्रकाश्य ग्रथों में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत मानक पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है ताकि भारत की सभी शैक्षणिक सस्थाओं में समान पारिभाषिक शब्दावली के आधार पर शिक्षा का आयोजन किया जा सके

प्रस्तुत ग्रथ हिन्दी व्याकरण का इतिहास, डॉ० अनन्ता चौधरी की मौलिक कृति का द्वितीय सस्करण है, जो भारत सरकार के मानव ससाघन विकास मत्रालय (शिक्षा विभाग) के शत प्रतिशत अनुदान से बिहार हिंदी ग्रथ अकादमी द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। यह पुस्तक विश्वविद्यालय के हिन्दी विषय के स्नातक एव स्नातकोत्तर कक्षाओ के विद्यार्थियो के लिए उपयोगी सिद्ध होगी

आशा है, अकादमी द्वारा मानक ग्रथों के प्रकाशन सम्बंधी इस प्रयास का सभी क्षेत्रों में स्वागत किया जाएगा।

 

लेखकीय वक्तव्य

हिन्दी व्याकरण का इतिहास अद्यावधि एक उपेक्षित विषय रहा है, जबकि हिन्दी में भाषा एवं साहित्य से लेकर साहित्य की गौण से गौण विधाओं तक के इतिहास लिखे जा चुके हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ हिन्दी के उसी अभाव की पूर्त्ति की दिशा में किया गया एक प्रारम्भिक प्रयास है

इस विषय पर, जार्ज ग्रियर्सन के भाषा सर्वेंक्षण मे तथा प० किशोरीदास वाजपेयी कृत हिन्दी शब्दानुशासन के अन्तर्गत डॉ० श्रीकृष्ण लाल द्वारा लिखित प्रकाशकीय वक्तव्य मे प्राप्त कुछ सूचनाओं के अतिरिक्त, अन्यत्र कोई भी सामग्री उपलब्ध न होने के कारण, यह कार्य मेरे लिए पर्याप्त श्रमसाध्य एव व्ययसाध्य प्रमाणित हुआ है हिन्दी के प्राचीन व्याकरण ग्रन्थों की तलाश में मुझे अनेकानेक स्थानो की एकाधिक बार यात्रा करनी पडी है उस कम मे, देश के भिन्न भिन्न पुस्तकालयों में, हिन्दी के अनेक दुर्लभ प्राचीन व्याकरण ग्रन्थों को मैने जैसी जीर्ण शीर्ण अवस्था मे देखा है तथा जिन कठिनाइयों के साथ उनका उपयोग किया है, उन अनुभवो के आ धार पर यह निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि कुछेक वर्षों में ही उनमे से अधिकांश का कही अस्तित्व भी शेष नहीं रहेगा, जबकि अनेक पहले ही लुप्त हो चुके हैं

प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्बन्ध में मेरा यह दावा नहीं है कि इसमें हिन्दी के प्राचीन से लेकर अर्वाचीन तक सभी व्याकरण आ ही गये हैं । निश्चय ही, इसमे वे सारे व्याकरण ग्रन्थ एव वैयाकरण अनुल्लिखित रह गये होगे, जिनकी सूचना मुझे नहीं मिल पायी इस या ऐसी अन्य भूलचूकों का यथासाध्य सुधार अगले सस्करण में ही सम्भव हो सकेगा ।

सामग्री संकलन के लिए मैने देश के जिन जिन पुस्तकालायों का उपयोग किया, उनमे नागरीप्रचारिणी सभा काशी तथा राष्ट्रीय पुस्तकालय कलकत्ता विशेष उल्लेखनीय है, क्योंकि हिन्दी के श्री अधिकांश दुर्लभ व्याकरण मुझ इन्हीं दो स्थानों में मिले । नागरी प्रचारिणी में श्री सुधाकर पाण्डेय जी ने मुझे जो स्नेहपूर्ण सहयोग एव सहायता दी उसे भूल पाना कठिन है। ग्रन्थ का समर्पण देश के जिन पाँच महान भाषा शास्त्रिया के नाम किया गया है, उनमें से प्रत्येक मेरे भाषा ज्ञान के गुरु रहे हैं मित्रों में डॉ० गोपाल राग डॉ० शोभाकान्त मिश्र, प्रो० पद्मनारायण तथा डॉ० काशीनाथ मिश्र का मैं विशेष रूप से आभारी हूँ जिनके बहुविध सहयोग तथा अमूल्य सुझावों से मैं सदा उपकृत होता रहा हूँ।

ग्रन्थ के मुद्रण एव प्रकाशन में बिहार हिन्दी गन्थ अकादमी के विद्वान निदेशक डॉ० शिवनन्दन प्रसादजी से मुझे आद्यना जो सौहार्दपूर्ण सहयोग एवं उपयोगी परामर्श मिलते रहे । उसके लिए मैं उनका हृदय से कृतज्ञ हूँ और रहूँगा सुहद्वर पण्डित श्री रज्जन सूरिदेव जी ने प्रूफ संशोधक के रूप में, श्री जानकी जीवन जी का टंड़क के रूप मे, युगांतर प्रेस के संचालक श्री देवेन्द्र नाथ मिश्र जी ने मुद्रक के रूप में तथा उनके कर्मचारी श्री सुग्रीव सिंह जी ने प्रधान सग्रथक के रूप में मेरे लिए को कठिनाइयाँ झेली हैं तदर्थ मैं उन सबका हृदय से आभारी हूँ।

ग्रन्थ की वर्तनी, उद्धरणों को छोडकर, प्राय मेरी अपनी मान्यताओं के अनुरूप है, जो अकादमी की मान्य वर्तनी से किञ्वित् भिन्न है इस विषय में लेखक के हठाग्रह को मान्यता देकर अकादमी के अधिकारियों ने निश्चय ही विद्वज्जनोचित उदारता का परिचय दिया है, जिसके लिए उन्हें शतश धन्यवाद। 

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