पुस्तक परिचय
इस उपन्यास को पढ़ते हुए प्रत्येक संवेदनशील पाठक स्पन्दनीय जिन्दगी के सप्राण पन्नों को उलटता हुआ सा अनुभव करेगा । सहृदयता के सहज संचित कोष के रस से सराबोर प्रत्येक शब्द, हर गीत की आधी पूरी कड़ी ने मानव मन के अन्तरतम को प्रत्यक्ष और सजीव कर दिया है । दो पीढ़ियों के जीवन के विस्तृत चित्रपट पर अनगिनत महीन और लयपूर्ण रेखाओं की सहा ता से चतुर कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु ने इस उपन्यास के रूप में एक अमित कथाचित्र का प्रणयन किया है । मैला आँचल की अमर साहित्य निधि के रचयिता की लेखनी से उतरे इस महाकाव्यात्मक उपन्यास को पढ़कर समाप्त करने तक पाठक अनेक चरित्रों, घटना प्रसंगों, संवादों और वर्णन शैली के चमत्कारों से इतना सामीप्य अनुभव करने लगेंगे कि उनसे बिछुड़ना एक बार उनके हृदय में अवश्य कसक पैदा करके रहेगा ।
लेखक परिचय
फणीश्वरनाथ रेणु
जन्म 4 मार्च, 1921
जन्म स्थान औराही हिंगना नामक गाँव, जिला पूर्णिया (बिहार) ।
हिन्दी कथा साहित्य में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रचनाकार । दमन और शोषण के विष्ठ आजीवन संघर्षरत । राजनीति में सक्रिय हिस्सेदारी । 1942 के भारतीय स्वाधीनता संग्राम में एक प्रमुख सेनानी की भूमिका निभाई । 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में जीवन्त योगदान । 1952 53 में दीर्घकालीन रोगग्रस्तता । इसके बाद राजनीति की अपेक्षा साहित्य सृजन की ओर अधिकाधिक झुकाव । 1954 में पहले, किन्तु बहुचर्चित उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन । कथा साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज आदि विधाओं में भी लिखा ।व्यक्ति और कृतिकार दोनों ही रूपों में अप्रतिम । जीवन के सन्ध्याकाल में राजनीतिक आन्दोलन से पुन गहरा जुड़ाव । जे.पी. के साथ पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गए । सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री की उपाधि का त्याग ।
11 अप्रैल, 1977 को देहावसान । प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें मैला आँचल परती पारिकथा दीर्घतपा ज़ुलूस (उपन्यास) ठुमरी अगिनखोर आदिम रात्रि की महक एक श्रावणी दोपहरी की धूप (कहानी संग्रह) ऋणजल धनजल वन तुलती की गन्ध श्रुत अश्रुत (संस्मरण) तथा नेपाली क्रान्ति कथा (रिपोर्ताज) रेणु रचनावली (समग्र) ।
आवरण यासर अराफात
जन्म 1978, बिहार । पटना विश्वविद्यालय से वीएफए तथा प्राचीन कला केन्द्र, चंडीगढ़ से चित्र भास्कर । एक उभरते हुए प्रतिभावान चित्रकार के रूप में जाने पहचाने यासर अभी तक पटना की कई दीर्घाओं में एकल व सामूहिक प्रदर्शनियाँ कर चुके हैं । विभिन्न सामाजिक और कला संस्थाओं में हिस्सेदारी । सम्मान बिहार कलाश्री तथा कलायतन पुरस्कार । भारत, पाकिस्तान, नेपाल तथा ब्रिटेन के संग्रहालयों में काम प्रदर्शित ।
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