तृतीय संस्करणका नम्र निवेदन
श्रीमद्भगवद्रीता सच्चिदानन्दघन सर्वलोकमहेश्वर प्रेमस्वरूप भक्तवत्सल भक्तभक्तिमान् स्वयं भगवान्की दिव्य वाणी है । भारतीय अध्यात्म-जगत् में तो गीताका अद्वितीय स्थान है ही, अखिल भूमण्डलके विद्वानों तथा विचारकोंके हृदयोंपर भी गीताका अनुपम प्रभाव है । विशेषता यह है कि गीतामें सभी परमार्थ-पथिक महानुभावों एवं लोकपथ-प्रदर्शक आचार्योंको अपने सिद्धान्तका समर्थन दृष्टिगोचर होता है ।यहाँतक कि राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रमें काम करनेवाले भी गीतासे विशुद्ध प्रकाश प्राप्त करते हैं । ऐसी महान विश्वकल्याणकारिणी गीताके अगाध रसज्ञान सागरमें जितना गोता लगाया जाय, उतना ही सौभाग्य है और गोता लगानेवालोंको उतने ही अमूल्य रत्न उपलब्ध होते हैं ।
हमारे श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज भी गीताज्ञानार्णवमें गोता लगानेवाले हैं और नित्य लगाते ही रहते हैं । इनको गीताने बहुमूल्य अमूल्य रत्न प्रदान किये हैं और अब भी ये नये-नये रत्नोंके लिये प्रयत्नशील हैं । इनकी विशेषता यह है कि ये सर्वजनहिताय उनका यथायोग्य परंतु मुक्तहस्तसे वितरण भी करते रहते हैं । इनकी इस सहज उदारताका प्रमाण है-प्राय: बारहों महीने प्रतिदिन अधिकारियोंमें गीताके गुह्य, गुह्यतर, गुह्यतम सिद्धान्तोंका प्रकाश करना और सरल हृदयके भावुकोंको मधुर गीताप्रसादका सरल भाषामें स्वाद चखाते रहना । यही इनका काम है-गीतासे लेना और गीतागायकके सेवार्थ गीताभक्तोंको देते रहना ।
यह ' गीता-ज्ञान-प्रवेशिका ' भी श्रीस्वामीजीका सरल मधुर गीताप्रसाद है, वो गीता-शिक्षार्थियोंको गीता समझनेकी सुविधाके लिये प्रस्तुत किया गया है । इसमें बड़ी सरलताके साथ श्रीमद्भगवद्रीताके प्रत्येक अध्यायमें आये हुए प्रधान विषयोंका संक्षिप्त वर्णन किया गया है । आनन्दकन्द भगवान् श्रीकृष्णने अपने प्रिय सखा अर्जुनके प्रति किस अध्यायके किन श्लोकोंमें किस-किस विषयपर क्या उपदेश किया है-इस पुस्तकमें इसपर तथा अन्यान्य आवश्यक उपयोगी विषयोंपर संक्षेपमें पूरा प्रकाश डाला गया है । भाषा और लिखनेकी शैली ऐसी है कि जिससे गीताध्ययनका आरम्भ करनेवाले नवीन जिज्ञासुजन भी अच्छी तरह समझकर हृदयंगम कर सकें ।
आठवें संस्करणका नम्र निवेदन
इस पुस्तकका प्रथम संस्करण ' गीताका विषय-दिग्दर्शन ' नामसे, तृतीयसंस्करण ' गीता-ज्ञान-प्रवेशिका ' नामसे और चतुर्थ संस्करण ' गीता-परिचय 'नामसे प्रकाशित किया गया था । अब इस पुस्तकका आठवाँ संस्करण पुन:'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका ' नामसे प्रकाशित किया जा रहा है । परमश्रद्धेय स्वामीजीने इस नवीन संस्करणमें आवश्यक परिवर्तन और परिवर्धन करके पुस्तककी पयोगिताको और बढ़ा दिया है । आशा है, गीताके विद्यार्थी इस पुस्तकसे अधिकाधिक लाभान्वित होंगे । । गीताकी पादानुक्रमणिका और शब्दानुक्रमणिका-ये दो विषय यद्यपि । । परमश्रद्धेय स्वामीजीके लिखे हुए नहीं हैं, तथापि उपयोगी समझकर इस पुस्तकमें दे दिये हैं । गीता-सम्बन्धी व्याकरण और छन्दोंका विषय ' गीता-दर्पण ' नामक ग्रन्थमें, विस्तारसे दिया गया है; अत: उसे इस पुस्तकमें नहीं लिया गया है ।
गीताके मार्मिक भावोंको जाननेके लिये जिज्ञासुओंको परमश्रद्धेय स्वामीजीके दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ- ' साधक-संजीवनी '' गीताकी टीका ' तथा ' गीता-दर्पण ' का भी अवश्य अध्ययन-मनन करना चाहिये ।
विषय-सूची
1
गीताके सम्बन्धमें कुछ ज्ञातव्य बातें
7
2
गीता-पाठकी विधियाँ
19
3
गीता-पाठके विश्राम-स्थल
27
4
गीताके प्रधान और सूक्ष्म विषय
29
5
गीताके प्रत्येक अध्यायका नाम, श्लोक, पद एवं अक्षर
67
6
गीतामें विभिन्न वक्ताओंद्वारा कथित श्लोकोंकी संख्या
68
गीतामें 'उवाच'
69
8
गीतामें अर्जुनके द्वारा किये गये प्रश्नोंके स्थल
70
9
गीतामें भगवान्के चालीस सम्बोधनात्मक नाम और उनके अर्थ
71
10
गीतामें अर्जुनके बाईस सम्बोधनात्मक नाम और अर्थ
74
11
गीतामें सञ्जय, धृतराष्ट्र और द्रोणाचार्य के सम्बोधनात्मक नाम
76
12
गीतामें आये सम्बोधनात्मक पदोंकी अध्यायक्रमसे तालिका
77
13
गीताभ्यासकी विधि
91
14
गीताकी श्लोक-संख्या कण्ठस्थ रखनेके लिये तीन तालिकाएँ
95
15
गीताके मननके लिये कतिपय प्रश्न
115
16
मूल गीता
122
17
श्रीमद्भगवद्रीता-पादानुक्रमणिका
153
18
गीताकी शब्दानुक्रमणिका
199
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