बाँग्सेन संहिता चिकित्सासार संग्रह: Bangsen Samhita (Chikitsasaar Sangrah)

FREE Delivery
Express Shipping
$36
$45
(20% off)
Express Shipping: Guaranteed Dispatch in 24 hours
Quantity
Delivery Ships in 1-3 days
Item Code: HAA022
Author: डा राजीव कुमार राय (Dr. Rajiv Kumar Rai)
Publisher: Prachya Prakashan
Language: Sanskrit Text With Hindi Translation
Edition: 2010
Pages: 901
Cover: Hardcover
Other Details 10.0 inch X 7.5 inch
Weight 1.34 kg
Book Description

भूमिका

 

वैद्य गदाधर के पुत्र बङ्गसेन द्वारा विरचित चिकित्सासार सग्रह' नामक ग्रन्थ ही कर्त्ता के नाम पर बङ्गसेन संहिता के नाम से विख्यात है । अपनी उत्पत्ति के सम्बन्ध में स्वयं बङ्गसेन ने इस प्रकार लिखा है |

श्रीकृष्ण ने अपने चरणकमलों के प्रभाव से पृथ्वी को आरोग्य किया परन्तु कुछ काल के पश्चात् उनके अपने स्वभाव बैकुण्ठ चले जाने पर यह पृथ्वी पुन: भयंकर रोगों से आक्रान्त हो गई । तब ऐसी रोगवाली और भयकारक पृथ्वी को देखकर मैंने गदाधर के घर में जन्म लेकर इस पृथ्वी को आरोग्य किया । सम्पूर्ण वैद्य पृथ्वी पर मेरे आगमन को किस प्रकार जानेंगे ऐसा विचारकर मैंने आरोग्य करने वाली और 'वैद्यों को प्राप्त करानेवाली इस 'बङ्गसेन संहिता' का पृथ्वी के समस्त लोकों के हित की कामना तथा अपनी यशप्राप्ति के लिए निर्माण किया । इस संहिता के निर्माण के पश्चात् मैने परलोक के लिए प्रयाण किया । मेरे जन्म से पूर्व यह अगस्तिसहिता के नाम से ससार में विख्यात थी । तदनन्तर मैंने गदाधर के सर में जन्म लेकर इसका प्रतिसंस्कार किया जिसके बाद से यह ग्रन्थ 'बड़सेन संहिता' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह 'बङ्गसेन-सहिता' नामक ग्रन्थ सपुर्ण ग्रन्थों का सारभूत और शीघ्र फल देनेवाला है ।

आयुर्वेदिक साहित्य के अन्तर्गत बड़सेन संहिता एक बहुमूल्य रत्न है । इसको चिकित्सा पद्धति अन्य चिकित्साशास्त्रों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ और व्यापक है । जो विषय अन्य ग्रन्थों में अपूर्ण है वे भी इसमें पूर्ण रूप से वर्णित हैं । इसी प्रकार जो विषय अन्य मथो में अत्यन्त क्लिष्टतापूर्वक वर्णित है वे इसमें अत्यन्त सरल रीति से निरूपित हैं । इसमें कितने ही ऐसे नवीन रोगों के निदान और चिकित्सा का वर्णन किया गया है जिनका अन्य ग्रन्थों में नाम तक नहीं मिलता । विशेषकर इसमें ग्रन्थकार ने प्राचीन आर्ष गन्थों के क्रम से अनुभूत सिद्ध योगों -का उल्लेख किया है ।

जिस प्रकार इसकी चिकित्सा का क्रम अत्यत्त श्रेष्ठ है उसी प्रकार रोगनिर्णय वातपित्तादिदोषनिरूपण, रसरक्तादि सप्तधातु, वात, पित्त और कफके क्रम से देश, काल एव रुग्ण प्रकृति का वर्णन, वसन्तादि षट्ऋतु, दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, और्षाधेयों के गुणदोष निघंटुखण्ड, कालज्ञान, अष्टविधपरीक्षा आदि अन्याय विषय भो अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं । जो विषय अन्य ग्रन्थों में आठ-आठ दस दस श्लोकों में कहे गये उन्हें इसमे केवल एक-दो श्लोकों में अत्यन्त सुगमरीति से कह दिया गया है । इस ग्रन्थ के प्रयोगों को अनेक ग्रन्थकारो ने अपने अपने ग्रन्थों में उद्धृत किया है । भिषकशिरोमणि बङ्गसेन ने ठोक आजकल के मनुष्यों की प्रकृति के अनुसार ही इसकी रचना की है । इस ग्रन्थ के प्रयोग चक्रदत्त, भैषज्यरत्नावली, आदि अनेक ग्रन्थो में पाये जाते हैं ।

इस ग्रन्थ के आधार सै जाना जाता है कि बङ्गसेन संहिता के बनानेवाले बङ्गसेन का प्रादुर्भाव विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ होगा । बङ्गसेन कान्तिकावास या कान्तिनगर मे गदाधर वैद्य के घर उत्पन्न हुये थे ।

कुछ विद्वानों का कथन है कि बङ्गसेन अनुमानत: ५०० वर्ष पहले मुज्फ्फरपुर जिले के कान्तिनगर में विद्यमान थे । वैद्यराज रामेश्वरानन्दजी ने अपने विशेष अनुसन्धान के आधार पर लिखा है कि बङ्गसेन अब से ४०० वर्ष पहले बगाल के पूर्वी भाग में किसी श्रीपुरनामक राज्य में उपस्थित थे । फिर भी बङ्गसेन का निशित इतिहास उपलव्य न होने से निर्णायक रूप से कुछ नहीं कहा जा सका ।

बङ्गसेन संहिता के अबतक जो सस्करण छपे थे उनमें से कुछ मूलमात्र थे और एकाध जो हिन्दी अनुवाद सहित थे उनकी हिन्दी अन्यन्त पुराने ढग की और अनेक स्थानों पर अस्पष्ट थी । साथ ही वर्तमान समय में तो इसका कोई भी संस्करण दशकों से उपलब्ध नहीं था । फलस्वरूप हमने वर्तमान संस्करण प्रकाशित करने का निर्णय किया । इसमें भूल को यथाशक्ति सुधारकर एक्) प्रामाणिक पाठ प्रस्तुत किया गया है । हिन्दी अनुवाद नये सिरे से आधुनिक भाषा में इस प्रकार किया' गया है कि आजकल के पाठकों के लिए सुबोध हो जाय । कथ के अन्त में औषधियों और द्रव्यों के हिन्दी और लैटिन नामों की एक परिशिष्ट भी जोड़ दी गई है जिससे यह सैरकरण और अधिक उपयोगी हो गया है ।

इस संस्करण के सम्पादन में चिरंजीव प्रदीप राय और राकेश राय से पर्याप्त सहायता मिली है । अन्त की परिशिष्ट का निर्माण तो इन्हीं लोगों ने किया है । प्रकाशन के कार्य की सम्पूर्ण देख-रेख भी इन्हीं लोगों ने की हैं । फलत: ये दोनों हार्दिक धन्यवाद के अधिकारी हैं ।

अपने वर्तमान परिष्कृत और संवर्धित रूप में इतने विशाल और महत्वपूर्ण ग्रन्थ को उपलब्ध करने की दिशा में प्रकाशकों का साहस भी सराहनीय है ।

विद्वान पाठकों से अनुरोध है कि यदि ग्रन्थ में उन्हें कुछ त्रुटियाँ या कमियाँ प्रतीत हों तो उनके सम्बन्ध में अपने परामर्श तथा सुझाव से हमें अनुगृहीत करें जिससे संस्करणों को और अधिक उपयोगी बनाया जा सके ।

यदि यह ग्रन्थ चिकित्सकों की कुछ भी सेवा कर सका तो हम अपने प्रयास को कृतकृत्य मानेंगे ।

 

Add a review
Have A Question

For privacy concerns, please view our Privacy Policy

Book Categories